श्रुती मुंगीकर

Tragedy

3.8  

श्रुती मुंगीकर

Tragedy

मेरा मन....

मेरा मन....

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ना खुशी में सुकून पाता है,

ना गम में रोता है,

ना जाने आजकल मेरा मन

क्या महसुस करता हैं।


ना अपनो में चैन पाता है,

ना परायों में बेचैन होता है,

ना जाने आजकल मेरा मन

क्या अहसास पाता है।


ना मजाक पे हँसना चाहता है,

ना दुःख में रोना चाहता है, 

ना जाने आजकल मेरा मन

क्या करना चाहता है।


ना अपनो के साथ अपनापन लगता है,

ना परायों के संग अकेला लगता है,

ना जाने आजकल मेरा मन 

कहाँ रहना चाहता है।


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