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Vijay Kumar parashar "साखी"

Abstract Tragedy Inspirational

4.5  

Vijay Kumar parashar "साखी"

Abstract Tragedy Inspirational

सावधानी से चल

सावधानी से चल

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सावधानी से साखी तू बहुत ही चल

आजकल इस दुनिया में बहुत ही, छल

जिसको मानते है, हम अपना, सकल

वही आंखों में डालता, आज धूलकण


जिन्हें समझते मीत, अपना कमल

वही फँसाता, हमें आजकल दलदल

सावधानी से साखी तू बहुत ही चल

आजकल जगह-जगह भरे सर्प दल


वही इन आंखों में लाता है, गंगाजल

जिन्हें बिठाते है, हम आसन मलमल

वही तोड़ता, हमारे स्वप्नों का महल

जिन्हें दी थी, हमने जीने की अक्ल


जिन्हें मुफलिसी में दिया था, संबल

थोड़ी से लापरवाही करेगी, असफल

आजकल के लोग बहुत ही निर्लज्ज

अपनों की संपति लूट लेते है, अचल


सावधानी से साखी तू बहुत ह

ी चल

आसपास क्या, भीतर बैठे कई शत्रुदल

जो सही कर्म करता, बिना किसी नकल

उसको यह दुनिया समझती है, पागल


तू अपने आप से पूंछ कर कर्म कर, नर

यहां तो खुद के साये कर रहे, आज छल

तुझे रुकना नही, बहना सदैव ही कलकल

इसके लिए तू लगातार बहनेवाला बन नल


विश्वासघात करने वालों का बस एक हल

उन्हें त्याग दे, जो लोग जलते तुझसे हर पल

सतर्क रह, गिरी सोच वाले बहुत आजकल

अंधकार गुम करते, उजाले बनाते उज्ववल


जो रखता सावधानी, चलता स्वपथ निश्छल

वो पाता मंजिल, जिसकी सोच में सर्व मंगल

उसके कर्म उसको बनाते, दुनिया मे सफल

वो खिलता बनकर कमल, दुनिया के दलदल।


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