साम्राज्य
साम्राज्य
जब संपूर्ण धरा पर अपना राज होता,
सम्पूर्ण पूंजी पर अपना अधिकार होता,
तब वो स्थान किसी का निजी साम्राज्य कहलाता,
जहां उसकी इच्छा सर्वोपरि मानी जाती,
उसका आदेश सबको मान्य होता,
उस विशाल भूमि का इकलौता हकदार वहीं होता,
सम्पूर्ण राज्य पर उसका ही अधिकार साम्राज्य कहलाता,
सम्पूर्ण साम्राज्य की भलाई उसका प्रथम दायित्व,
और उसका भरण पोषण करना उसका प्रथम उत्तरदायित्व,
बेशक साम्राज्य में फैलता दुराचार,
पर जब वहां का राजा सूझबूझ और समझदार है,
तब उस साम्राज्य का विकास भी संभव है।