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Prem Bajaj

Romance

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Prem Bajaj

Romance

साक़ी

साक़ी

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यूं तो हर कोई इस जहां में पीता है पीना तो वो है जो तेरे नैनों से पीए साकी ।

करते हैं खुद को बर्बाद तेरे इश्क में , तुम कहते हो मय ने हमें बर्बाद किया ।


चल रही है सांसें अभी ये तेरे इश्क - ए - मय की मेहरबानी है ।

कैसे कहें कि तुम्हारे नशीले नैनों की हाला ने हमें बर्बाद कर दिया ,

हो इतने मासूम तुम, कि हमने तुमसे गिला भी नहीं किया ।


कैसे कर दूं आज़ाद तुम्हें , मेरे बहकाने की सज़ा तो तुम्हें झेलनी होगी ।

करता हूं मय से तोबा मगर तेरे नैनों की हाला में डूब जाता हूं ।


पूछे कोई मयकशों से छलकते हैं क्यों पैमाने , नीमबाज आंखों में शराब सी मस्ती होती है ।

तु साक़ी , तेरी निगाह मयकदा , समाया है सारा मयख़ाना तुझमें ।


हम तो हो चुके बर्बाद आबाद रहे तेरा मयख़ाना , यहां ज़िन्दगी का हर दर्द मिटता है मेरा साक़ी ।

मैंने खाई थी कसम मय ना पीने की , मगर तु नैनों की मदिरा पिला दे तो मैं क्या करूं ।


ना निगाहों से पिला , ना हाथों से पिला , मज़ा आएगा जीने का एक बार दिल से पिला साक़ी ।

खुद को बेचा , दिल को बेचा , बेच दिया घर-बार अपना, अब तो तेरे दिल में ही घर बनाऐंगे साक़ी।


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