रूठना, मनाना
रूठना, मनाना
रुठने मनाने का सिलसिला कुछ यूं हुआ,
मान कर भी फिर रूठने को दिल हुआ,।
उनको रूठने पर गुरूर था,
हमें मनाने का सरूर था,
उन्होंने रूठने में उम्र गवा दी
हमने मनाते मनाते जिंदगी तबाह की,
उनकी आदत थी मैं मजबूर था,
शायद उनको रूठने पर गुरूर था
पर हमें मनाने का सरूर था।
कह दिया नाराज क्यों हो किस बात पे हो रूठे,
चलो मान भी जाओ तुम सच्चे हम झूठे,
लेकिन रूठ जाना उनकी एक कला थी,
जो मेरे लिए एक बला थी,
यही उनका कसूर था उनको रूठने पर गुरूर था
हमें मनाने का सरूर था।
उनकी यह अदा भी बहुत प्यारी थी,
पर मेरे लिए न्यारी थी, रूठने से उनके सूनापन सा लगता था,
रोने में भी उनके अपनापन लगता था
लेकिन मेरा क्या कसूर था
उनको रूठने पर गुरूर था
मुझे मनाने का सरूर था।
चलता रहा सिलसिला
सुदर्शन ज्यों ही मनाने का
न जाने किसने हक दिया था उनको दिल दुखाने का,
शायद उनका अपना गुरूर था
इसलिए उनको रूठना जरूर था,
हमको मनाना जरूर था।
शायद वो हंसते थे हंसाने के लिए,
रोते थे रुलाने के लिए,
हम तो ता उम्र जीते रहे उनको मनाने के लिए।
सोच रखीं हैं बहुत सी बातें
उन्हें सुनाने के लिए,
लेकिन मुद्दतों से नहीं आए वो मनाने के लिए,
शायद उनका भी दिल मजबूर था
या उनको रूठने पर गुरूर था और
हमें मनाने का सरूर था।