रूह की मंडी लगा कर
रूह की मंडी लगा कर
रूह की मंडी लगा कर अब हँसता है इंसान,
जिस्म-फरोशी रूह की अब करता है इंसान...
बाजे-बाजे बिक रहे गिलाफ़-ए-ईमान,
और नंग-धड़ंग बदज़ात फिरता है इंसान...
रूह की मंडी लगा कर अब हँसता है इंसान,
जिस्म-फरोशी रूह की अब करता है इंसान...
बाजे-बाजे बिक रहे गिलाफ़-ए-ईमान,
और नंग-धड़ंग बदज़ात फिरता है इंसान...