ऋतुराज बसंत
ऋतुराज बसंत
पीली-पीली भीनी-भीनी सरसों की खुशबू लेके आया है
गुलशन के फूलों पर जैसे मानों के रंग बसन्ती छाया है
ठिठुर रहे थे सर्दी से वो जो सिकुड़ - सड़क किनारों पर
उजला- उजला सूरज उन सबको अब राहत देने आया है
खबर मिली है पीपल पर कोपल, नीम बौर पर छाया है
छिपकर बैठे थे जो पंछी सबने मिल के पंख फैलाया है
कोयल के स्वर ने हर जन के दोनों कानों को सहलाया है
हर्षित मन फुलवारी में सुंदर तितली बन कर मंडराया है
सरस्वती सुर सरिता ने ही मानव जीवन को सुलझाया है,
यूँही उठी नहीं कलम इसपे तो माँ की ममता का साया है।
राही ने बड़े सलीके से सबको खुलकर के ये बतलाया है,
प्रकृति की सौगातों को लेके ऋतुराज ‘बसन्त’ फिर आया है।