रोटी
रोटी
रोटी चाहे जैसी हो
गोल हो, चौरस हो
गेहूं की हो जौ की हो
मुसीबत में चाहे घास की हो
सबको प्रिय होती है
रोटी भूख मिटा देती है
हर घर की रोटी का
स्वाद अलग होता है
रोटी में अन्न और पकाने वाले का
भाव समाया होता है
इसीलिए तो
मां के हाथ का खाना
सबसे स्वादिष्ट लगता है
मां की थाली के आगे
छप्पन भोग भी
फीका लगता है
सुबह छः बजे पार्क में
टहलते हुए
ताजी हवा के साथ
आती रोटी की महक
बरबस ही ध्यान खींचती है
जो मां के हाथों बनी
रोटी की महक से
मिलती जुलती है
पार्क की दीवार से सटे
फुटपाथ पर
एक मजदूर परिवार
रहता है
सुबह छः बजे उनका
खाना पक रहा होता है
चूल्हे के पास बैठ
पति बच्चे संग रोटी
खा रहा होता है
महिला सेक रही होती है रोटी
मेहनत की मिठास से
महक रही होती है रोटी
रोटी से आती महक का
एक और भी कारण है
इन रोटियों की तैयारी
ब्रह्म मुहूर्त में हुई होती है
आसमान से बरसे अमृत की बूंद
शायद आटे में मिल गई होती है
मुझे याद आ जाती है
बचपन की स्वादिष्ट रोटी
हम चूल्हे के आस पास
पिता संग बैठ खाते थे
मां ऐसे ही पकाती थी रोटी
ब्रह्ममुहूर्त में जागकर
मां आटा पीसा करती थी
चक्की के मधुर नाद से
मेरी नींद खुला करती थी
पिता के हाथ से बोये अन्न में
विशेष बात थी
मां के हाथ से पिसे हुए आटे में
बहुत मिठास थी
इसीलिए रोटियां महकती थीं
तनमन को तृप्त करती थीं
अब भी खाती हूं भूख भगाने रोटी
पहले सी तृप्ति नहीं देती अब रोटी
अब रोटी में वो बात नहीं
अब रोटी में वो स्वाद नहीं
बचपन में
हाथ पर रोटी रख कर खाने का
आनंद ही कुछ और था
बिन सब्जी
गुड रोटी खाने का
स्वाद ही कुछ और था
रोटी तब भी थी अब भी है
रहेगी सदियों तक
भूख के साथ रोटी
लेकिन हर सदी में
सबको प्रिय होगी
मां के हाथ की रोटी।