रोते रोते हंसा
रोते रोते हंसा
रोते -रोते हंसा
उस दिन
मैं रोते -रोते हंसा
जिंदगी के उस दौर में,
जब हकीकतों का सामना हुआ
खुद से ,
लड़ते -लड़ते जब,
खुद का सामना हुआ
उस दिन
आईने में,
खुद को देख कर
मैं रोते- रोते हंसा
क्यों ?
डर को निकाल नहीं पाते
हार जाओगे,
यह सोच कर
क्यों?
जीत की बाजी नही लगाते
उठो !
अब जवाब देना है
तमाम सवालों का हिसाब देना है
उन जवाबों की तलाश में,
उस दिन मैं रोते -रोते हंसा
अपनी कमजोरियों को,
क्यों अपनी ताकत बनाते नही
तुम सब कर सकते हो
अपने भीतर की, आवाज
क्यों सुन पाते नहीं
जिस दिन मैंने
खुद को सुन लिया
उस दिन
मैं रोते- रोते हंसा।
