" रोग "
" रोग "
असहनीय पीड़ा
हो रही है
दर्द से कराह
रहे हैं
कोई आके
हमें देखे
हमारे नब्जों
को परखे
आलाओं से
ह्रदय के गतियों
को समझे
हर गत्र-गत्र में
न जाने कौन
सा रोग
फैल गया है ?
कोई कहते हैं
"असहिष्णुता"
का "वायरस "
सर चढ़ कर
बोल रहा हैं !
कोई कहता है
"प्रतिशोध" का
जहर अंग -अंग
में फैल गया है !
धर्म की
झिल्लियाँ
आखों में
छा गयी है
दवा सटीक
इसकी मिलती
नहीं है !
"देशप्रेम "रोग
का इलाज
कोई जान
नहीं पता है !
सक्षम चिकित्सक
भी इसे भाँफ
नहीं पता है !
जब हमारी
मानसिकता
सबल होगी
और हम जब
स्वथ्य होंगे
प्यार का
एहसास होगा
हम निरंतर
बढ़ते रहेंगे !
