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Dr Lakshman Jha "Parimal"Author of the Year 2021

Abstract

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Dr Lakshman Jha "Parimal"Author of the Year 2021

Abstract

" रोग "

" रोग "

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असहनीय पीड़ा

हो रही है

दर्द से कराह

रहे हैं


कोई आके

हमें देखे

हमारे नब्जों

को परखे

आलाओं से

ह्रदय के गतियों


को समझे

हर गत्र-गत्र में

न जाने कौन

सा रोग

फैल गया है ?


कोई कहते हैं

"असहिष्णुता"

का "वायरस "

सर चढ़ कर

बोल रहा हैं !


कोई कहता है

"प्रतिशोध" का

जहर अंग -अंग

में फैल गया है !


धर्म की

झिल्लियाँ

आखों में

छा गयी है

दवा सटीक

इसकी मिलती

नहीं है !


"देशप्रेम "रोग

का इलाज

कोई जान

नहीं पता है !


सक्षम चिकित्सक

भी इसे भाँफ

नहीं पता है !


जब हमारी

मानसिकता

सबल होगी

और हम जब

स्वथ्य होंगे


प्यार का

एहसास होगा

हम निरंतर

बढ़ते रहेंगे !


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