रणबाकूरें (कारगिल योद्धा)..!
रणबाकूरें (कारगिल योद्धा)..!
कायर कपटी आरि धोखे से
जब सीमा पर आ बैठा,
अपने बुरे इरादों से
वह क्षेत्र हमारा हड़प बैठा,
ऊंचे ऊंचे हिम शिखरों पर
बंकर असंख्य उसने बना डाले,
कमजोर निरीह समझ गलती से
वो ललकार हमें बैठा।
लेकिन उसकी ये गलती उस पर ही
भारी पड़ने वाली थी,
जिन इरादों से वो आया
वो हवा निकलने वाली थी,
उसकी हर नापाक हरकतों का
दंड उसे मिलने वाला था
देख रौद्र रूप भारत वीरों का
वो रण छोड़ने वाला था ।।
छल प्रपंच की फितरत उसकी
यहां काम ना आएगी,
भारत के वीरों के हाथों हाथों
उनकी वहीं कब्र बन जायेगी,
दुश्मन के एक एक घुसपैठियों को
ये वीर मार गिराएंगे
उनकी हर कुटिल चालों को
नाकामयाब करके ये दिखलाएंगे।
कारगिल की हर चोटी पर
फिर तिरंगा लहराएगा,
जान भले जाए भारत मां का
शीश ना झुकने पाएगा,
सीने में गोलियां खाकर
वो वीर अमर हो जायेंगे,
लहू देकर अपना वो
भारत मां का कर्ज चुकाएंगे।।
उनके इस बलिदान को
सदा याद रखेगा हिन्दुस्थान,
भारत के सजग प्रहरियों को
कोटि कोटि मेरा शत शत प्रणाम,
युग युग तक उनके शौर्य की
फिर गाथा गाई जाएगी
चहुं दिशा फिर विजय पताका
भारत की लहराएगी।