रंग बरसे!
रंग बरसे!
छंद – मत्तगयंद सवैया
रास रचा हर्षाय रहे मन,
गोप सखी मदमस्त हुए हैं।
शेष नहीं दुख जीवन में अब,
प्रेम परस्पर पस्त हुए हैं।।
देह अबीर भिगोय दयी प्रिय,
पावन प्रीति परस्त हुए हैं।
भंग गुलाल सु-रंग चढ़ाकर,
मोहन मोह समस्त हुए हैं।।
खूब करी पुरजोर सखी मिल,
गाल अबीर लगाय रहीं हैं।
रंग मुरारि रचा सब के मन,
स्नेह सुधा बरसाय रहीं हैं।।
रंग अबीर गुलाल उड़ावत,
श्याम चलाय रहे पिचकारी।
लाज तजी पट खोल दिए सब,
संग करें हुड़दंग मुरारी।।
भीग गई अँगिया मनभावन,
भौंह तनी मृगनैन तिरोरी।
श्याम प्रिये तन रंग चढ़ा शुभ,
थाप बजात मृदंग किशोरी ।।