रमजान महीना
रमजान महीना
रमजान का यह महीना बड़ा पावन है
खुदा की इबादत का यह पवित्र मन है
जो भी इंसान इस महीने रखते रोजे है
वो पाते खुदा का बड़ा ही रहमोकरम है
तन के साथ, मन भी पवित्र हो जाता है
जो भी रोजे रखते इस दुनिया में जन है
रमजान का यह महीना बड़ा पावन है
इस माह हमें मिलता रूहानी शबनम है
पर असली रोजा तो इस मन का होता है,
जो भी रखते इस मन पे निगरानी जन है
वो ही पाते खुदा की इबादत का इल्म है
आंखों में सच हो, कर्ण से सुने अल्लाह हो
मुँह से निकले सिर्फ अल्फाज अल्लाह हो
रोम-रोम से अल्लाह बोलता ये बदन हो
यह हाथ करे दान का ही केवल श्रम है
यह पैर चले नेकी के रास्ते की ओर है,
काम आये नेकी के लिये पूरा ये बदन है
बस यही असली रोजे का होता वचन है
हर दिन ही फिर तो रमजान का होगा न,
सुन ले मेरे बावले, पागल रे तू मन है
असली इबादत का होता यही मर्म है
अपनी ही ख़ुदी में मस्त रे तू जन है