रिवाज़ नहीं
रिवाज़ नहीं
यूं तो रिवाज़ नहीं जन्मदिन पर
आपके आपसे ही कुछ मांग लूं।
पर सिद्दत है की कोई और नहीं-
उन सुर्ख लवों ने जो दवा रखी है,
खुर्शीद में ओस की बूंदों सी
चमकती वो शादाब हंसी।
वो बेशकीमती मोतियों की कतार-
जो आपने छिपा रखें हैं अपने,
रुसवाइयों के शबिस्तान में
'अंशु' वो इसकी मुस्तहक़ नहीं।
उन्हें दे लेने दीजिए मुबारकबाद
मुत्तसिल हो मेरी ख्वाहिशों से।