एक शाम
एक शाम
एक शाम ढल रही थी
कुछ पलों में
फ़िर ना लौटते कलों में
कह रही थी आसमां की
सुर्खियां
कोई सूरज
आज
फ़िर से जला है
लौटते पक्षी घरों को
कह रहे थे
ये आसमां है
यहां रहना मना है
एक घोसला जरूरी है
किसी साख़ पर
आने को है रात जो
अंधेरा घना है
सिमटते शोर में
ख़ामोश पगडंडियों से
गुज़रता मैं
ये सोचता सा
संगीत बन
मन मौन में
गूंजता सा
कुछ ऊबता सा
या फिर ख़ुद को
ढूंढता मैं
बढ़ रहा था
एक शाम ढल रही थी
कुछ पलों में
फ़िर ना लौटते कलों में।