मेरी बातें
मेरी बातें
मेरी बातें कुछ अपनी - अपनी सी
मेरी बातें कुछ अपनी - अपनी सी
संकरी गलियों में एकाकी रमती सी।
मेरी बातें कुछ अपनी – अपनी सी
चल पड़ती मन के रस्तों पर
अनजानी मंजिल पर अथक बढ़ती सी।
कभी अतीत की लहरों में बहती सी
बिन नाविक हिचकोले भरती सी।
कभी भविष्य के तुंग शिखर पर
संकरे रस्तों पर सर्पिल चढ़ती सी।
मेरी बातें कुछ अपनी – अपनी सी।
कागज़ की नाव बारिश में बहती सी।
कुछ बीते बचपन के अल्हड़पन सी
खुद पर इतराती कुछ मस्त पवन सी।
मेरी बाते कुछ अपनी अपनी सी।
रुकती थमती सांसों की छुअन सी।
सूखे होंठों पर कुछ नम स्पर्शओ सी।
कुछ खाली बाहों में खुशबू भरती सी।
कुछ नर्म छुअन की रसमय यादों सी।
मेरी बातें कुछ अपनी – अपनी सी।
कुछ पलकें गीली करती सी।
कुछ आंखें बोझिल करती सी।
चुप रहकर सबकुछ कहती सी।
सबकुछ कहकर चुप रहती सी।
मेरी बातें अपनी – अपनी सी
संकरी गलियों में एकाकी रमती सी।