संघर्षों की राह
संघर्षों की राह
संघर्षों की राह पर पथिक
एकाकी ही चलना पड़ता है।
हरियाली तो सावन की है -
पतझड़ आते ही वृक्षों को
पत्ते-पत्ते झड़ना पड़ता है|
जो खिले धूप सर्दी की तो
सब मीत इकठ्ठे मिलते है|
हो दूभर जेठ दुपहरी तो
अकेले ही तपना पड़ता है|
हो संकल्प बांटने का जीवन
तो
सूरज सा जलना पड़ता है|
अनवरत अंधेरे इकहरे उठकर
हर सांझ अहद ढालना पड़ता है।
हो लक्ष्य सहज तो -
जीवन कैसा फिर?
हिमशिखर पे जमी बर्फ़ को
पत्थर-पत्थर से टकराकर
बन गंगा अविरल बहना होता है।
...... अंशु अवस्थी
