रिश्तों संग निखारें जीवन
रिश्तों संग निखारें जीवन
रिश्ते चाहे होएं रक्त के या हों खुद ही हमने बनाए,
ये तो हरि की ही थी इच्छा तब ही तो ये थे बन पाए।
स्वामी की आज्ञा ही समझें हम सब उसकी हर एक इच्छा,
जीवन के प्रतिकूल समय में ही होती है सम्बंधों की परीक्षा।
सफल हों सदा हम हर परीक्षण में सदा ऐसे संबंध बनाएं,
शुभता शुचिता को ध्यान में रखकर हम सारे सम्बन्ध निभाएं।
जैसी दूजे से है हमें अपेक्षा हम वैसा ही निज आचरण दिखाएं,
धोखा रूपी काठ हांडी फिर न चढ़ती तथ्य कभी ये भूल न जाएं।
वहीं काटते हैं जो बोते हैं और देते वही जो होता है पास,
अर्जित करें वही जो देना है अर्जन हित नित करें प्रयास।
प्रेम मित्रता सदाचार और शुभता इस जग के हैं संबंध निराले,
ये सबका जीवन हैं निखारते ज्यों भोजन स्वाद निखारें मसाले।
