रिश्तों में अहसासों की कुछ नमी भी होनी चाहिए
रिश्तों में अहसासों की कुछ नमी भी होनी चाहिए
क्यों तेरी निगाहों में मेरे अहसास की कीमत कुछ भी नहीं?
जज़बात की कोई कद्र नहीं, तबीयत की कोई फिक्र नहीं।
तू जख्मी करता रहता है, हम घायल होते रहते हैं।
तू नमक छिड़कता रहता है, हम दिल सहलाते रहते हैं।
हम तुझको कितना चाहते हैं, इसकी तुझको कोई खबर नहीं।
कितना भी कर लें काम, मगर फिर भी तुझको कोई सब्र नहीं।
हरदम तेरे ताने सुन लें, हम इतने भी मजबूर नहीं।
तू कह देगा मगरूर हैं हम, तेरे जितने मगरूर नहीं।
अपनी इच्छा को मार- मार कर अब तक जीती आई थी।
अभिलाषाओं का गला घोंटना, अब बिल्कुल मंजूर नहीं।
रिश्तों में अहसासों की कुछ नमी भी होनी चाहिए।
मन से मन ही न मिले जहाँ, वो रिश्ते अब मंजूर नहीं।