रिश्ते
रिश्ते
लाख मुख फेर लो,
रिश्ते को तोड़ लो,
पर नहीं टूटेगा
जन्मों का बंधन !
धारा को मोड़ लो,
गति को समेट लो,
फिर भी तोड़ देती,
सरिता सब बंधन !
उसे भी एहसास है,
सागर में ही बास है,
कब तक करेंगे हम
शिखरों पर क्रंदन !
पेड़ों की छावों में,
अपने ही गांवों में
मिलती है राहत
ममता की बाँहों में !