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RAJNI SHARMA

Abstract Classics

4  

RAJNI SHARMA

Abstract Classics

रिमझिम फुहारें

रिमझिम फुहारें

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वो रिमझिम फुहारें मन को भाएं रे,

सावन का झूला, वो हँसी ठिठोला, 

बीते हुए दिन , मन को बहुत तरसाएं रे,      

रिमझिम फुहारें मन को भाएं रे।


वो दोस्तों की महफ़िल, सुनहरे पलझिन,      

पार्को की चहल-पहल,वो योग की कक्षाएँ,

वो बाज़ारों की बस्ती, पानी पूरी की सी-सी,    

याद आए रे, रिमझिम फुहारें मन को भाएं रे।


वो हरियाली की तीज, महेंदी की भीड़,

बेफिक्र से तैयार होकर घूमने की रीस,

वो नए-नए परिधानों को लेने का लालच,

माँ से मिलने की प्यारी सी चाहत, याद आए रे, 

रिमझिम फुहारें मन को भाएं रे।


धुली - धुली सी सड़कें, हरे-भरे पेड़ों की ठंडक,

सौंधी सी मिट्टी की खुशबू, वो फूलों की कलियांँ,

बच्चों का चहचहाना, वो बचपन की अठखेलियाँ,

याद आए रे, रिमझिम फुहारें मन को भाएं रे।


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