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Shalini Dikshit

Abstract

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Shalini Dikshit

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रिमझिम ध्वनि

रिमझिम ध्वनि

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सावन की रिमझिम ध्वनि

जब कानों में पड़ती है

ना जाने तब क्या-क्या 

याद हमें फिर आता है


वह मम्मी का

मुझे झूला झूलाना

दिल को बहुत

भावुक करता है


भीगते हुए

साइकिल पर पैडल मारना

दिल में खूबसूरत

उमंग भर देता है


यूँ उसका मुझे

छुप छुप के देखना

दिल में मीठी सी

लाज भर देता है


सखियों संग

तीज पर सजना सवरना

दिल में अजब

रोमांच भर देता है


दूर तक साथ उनके

भीगते हुए निकल जाना

दिल में बेहद

प्रेम भर देता है


अपने ही घर में

मेहमान बन सावन में जाना भी

दिल को

हर्षित कर देता है


तुम्हारी जुदाई के 

वो दिन

दिल को 

विरह वेदना से भर देते हैं


अब सावन में

घर जाऊं या बच्चों की राह देखूं

एक दुविधा सी

दिल में भर देता है


सावन तो सावन है

हर पड़ाव पर

अपने अलग रंग

दिल में बिखेर देता है।



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