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Minal Aggarwal

Abstract

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Minal Aggarwal

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मैं खुश हूं

मैं खुश हूं

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आज 

सुबह सवेरे की 

हल्की नर्म धूप की 

पहली किरण ने 

मेरे घर की दहलीज छुई, 

मैं खुश हूं 

आहिस्ता आहिस्ता 

धीरे धीरे अपने कदम बढ़ाते 

हुए 

वह मेरे कमरे की खिड़की तक 

पहुंची 

मैं खुश हूं 

मेरे साथ ही 

सुबह की धूप ने

आज 

एक कप गरमा गरम चाय 

पी 

मैं खुश हूं 

इंसानी रिश्ते जब 

इस संसार में 

टूटने लगते हैं तो 

इस कायनात से 

हमारे रूहानी रिश्ते 

एक सदियों पुराने 

बिछड़े हुए किसी दोस्त से ही 

दोबारा मिलने लगते हैं 

सुबह तो रोज ही उगती है 

धूप की गर्मी लिए 

एक चमकते सूरज के साथ 

धूप मुझे छूकर 

चारों दिशाओं में फैलती ही 

इसलिए है ताकि 

मैं उसकी किरणों के जाल सी 

फैली खिलखिलाती हंसी के 

फव्वारे में नहाकर 

हर रोज 

पूरे दिन भर के लिए 

खुश हो जाऊं 

बहुत खुश हो जाऊं।


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