रहबर
रहबर
दरवाज़ा जब भी, खटखटाता है कोई !
रह रह कर यूँ ही, याद आता है कोई !
दिलासा दे कर न, वो गया होता,
ज़ार ज़ार मैं, रो लिया होता !
सीने में तमाम दर्द लिये,
हँस कर जुदा, हो गया कोई !
गले लगाकर, यूँ मुँह फेरा उसने,
ख़ैरियत पूछ, बीमार कर गया कोई !
उसूल ऐ वफ़ा तेरे, क़ुबूल हैं मुझ को,
पर रहबर मेरा न, रह गया कोई !

