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सीमा शर्मा पाठक

Abstract Inspirational

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सीमा शर्मा पाठक

Abstract Inspirational

रेत सी फिसलती जिंदगी

रेत सी फिसलती जिंदगी

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अनगिनत ख्याल आंखों में सजे बैठे हैं

पूरे करूँ उनको सपने मुझसे ये कहते हैं

मगर जिंदगी है कि चलती जा रही है

रेत की तरह फिसलती जा रही है।


लब हर पल मुस्कराना चाहते हैं

दिल की बात अपने बताना चाहते हैं

खामोश निगाहें कुछ छिपा रही हैं

रेत सी जिंदगी फिसलती जा रही है।


धीरे -धीरे मैं भी शिव हो रही हूं

कतरा कतरा जहर पी रही हूँ

रिश्तों की डोर यूं संवर जा रही है

रेत सी जिंदगी फिसलती जा रही है।


अल्हड़पन, नादानियां बात हुई पुरानी

छूटी कहीं वो दादी नानी की कहानी

उम्र से पहले ही समझदार बना रही है

रेत सी जिंदगी फिसलती जा रही है।


याद आते हैं अक्सर दोस्ती के अफसाने

मुस्कराहट और खिलखिलाने के जमाने

उन लम्हों के लिए अब तरसा रही है

रेत सी जिंदगी फिसलती जा रही है।


करना है तो कुछ अच्छे कर्म कर ले

ऐ इंसान सबका दर्द तू समझ ले

कुदरत भी अब तो कहर ढा रही है

रेत सी जिंदगी फिसलती जा रही है।



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