रेशे रुई के
रेशे रुई के
हल्की रुई के रेशे हैं, ये हवा से भी हल्के हैं
ना ठौर ना ठिकाना ना उड़ने के सलीके हैं,
फूंक से उड़कर तैर रहे हैं बिखरे बिखरे से
बेफिकरे जाले से ये उड़ते अपनी मौज में हैं,
हो गया देख कर इन्हें मन मेरा कुछ हल्का
मेरी फिकर को भी ले उड़े ये यार बहके से हैं,
भार से, भाव से, मैं परछाई से भी हलकी हुई
परिंदों सी उड़ती अब नभ में कैद से हल्की हुई।
