रौशनी बदलाव की
रौशनी बदलाव की
रौशनी बदलाव की मुझको नज़र आती नहीं
क्या तुम्हें चेहरों पे लाचारी नज़र आती नहीं?
गाँव जा के देख प्यारे हर तरफ विरानियत
शहर की यह भीड़ क्या तुमको नज़र आती नहीं?
हो रहे है दुष्कर्म छोटी सी बच्ची के भी साथ
रोज़ सुनते है खबर फिर भी शर्म आती नहीं?
औरतों को हम बराबर का समझते ही नहीं
गिर चुके है कितना हम फिर भी शर्म आती नहीं?
इन किसानों की फ़िक्र अब हुकमरा को है नहीं
इन की थाली खाली है तुम को नज़र आती नहीं?
भूख के मारे बहुत बच्चे है जो मर जाते हैं
छोटी छोटी यह जो कबरे हैं नज़र आती नहीं?
भीड़ के इंसाफ में मालूम तुम को क्या हुआ
खून के छीटे भी क्या तुम को नज़र आते नहीं?
तुम जो कहते हो उदासी इस शहर आती नहीं
यह पेड़ से जो लाश लटकी है नज़र आती नहीं?
तुम जो सबके सामने चिल्ला रहे हो ना इबाद
अच्छी कोई बात जल्दी से समझ आती नहीं
रौशनी बदलाव की मुझ को नज़र आती नहीं
क्या तुम्हें चेहरों पे लाचारी नज़र आती नहीं?