अरे छोड़ो
अरे छोड़ो
वो शायद ऊब सी गई थी मेरी चाहत से
वरना सवाल ए मोहब्बत पे न कहती "अरे छोड़ो"।
गर मुझ से खफ़ा है तो बताए तो खफ़ा क्यूँ
हर बार जो पूँछू तो कहती है "अरे छोड़ो"।
ग़लती है मेरी तो वो सज़ा क्यों नही देती
मेरी चाहत में कमी है तो बता क्यों नही देती।
ख़ामोश रहती है अगर पुछू भी कुछ उस से
हर सवाल का एक ही जवाब है "अरे छोड़ो"।
वो शायद ऊब सी गई थी मेरी चाहत से
वरना सवाल ए मोहब्बत पे न कहती "अरे छोड़ो"।
हर ज़ख्म मुझे उसकी जुदाई से मिला है
क़ुर्बतों का सिला कितनी सफ़ाई से मिला है।
एक वक़्त था के उसके ख़्यालों में भी हम थे
एक वक़्त है क़े उससे जुदा ज़ी रहे हैं हम।
इबाद उसकी आमत का मुन्तज़िर ही रह गया
वो नहीं आई ,जब पूछा ,कहा उसने "अरे छोड़ो"।
वो अब कहती तो है मुझसे " मैं बेवफ़ा नही थी"
मैं भी कह देता हूं हँसकर वही जुम्ला "अरे छोड़ो"।
वो पूछते हैं आखिर लिखते हो क्यों तुम ऐसा
सो अब सब के लिए जवाब यही है "अरे छोड़ो"।
वो शायद ऊब सी गई थी मेरी चाहत से
वरना सवाल ए मोहब्बत पे न कहती "अरे छोड़ो"।