रावण लीला
रावण लीला
रावण संहिता में लिखी,
है यह कथा,
राम ने अंत में रावण को दिया ये बता,
भूल जाओ तुम बातें बीती,
चुप चाप मेरी शरण में आओ,
और दे दो मुझे मेरी सीता प्यारी,
रावण ने राम की कथा सुनी,
चुप चाप अपनी हार मानी,
रावण ने नहीं कभी सीता के,
मान पर उंगली की,
पर राम ने भरी सभा में सीता की,
कर दी बेइज्जती,
रावण को हुआ सीता से इतना प्रेम,
छोड़ दिया उसने सोने की लंका में,
रहने का सुख – चैन।
जब जब सीता रोई,
तब तब रावण ने भी आसुएं बहाइं,
स्वयंवर में राम की विजय,
के लिए किया एक यज्ञ,
राम को थी ये बात पता,
फिर भी उसने की रावण,
की काबिलियत पर व्यंग्य,
जब जब शिव ने रावण से हारने,
के लिए कहा,
तब तब रावण ने अपनी शक्ति को दिया हटा।
राम को जिताने के लिए,
रावण ने अपनी संतान खोई,
फिर बादमें अपने दुखों को उसने,
कविताओं में पीरोई।
सीता को जब राम ने वनवास भेज दिया,
तब रावण ने भी अपना सुख छोड़ दिया,
जाकर उसने अपने आप को भी
वन में बसा लिया।
गुरु आचार्य का भेस बना लिया,
और लुव कुश को ज्ञान,
देना शुरू कर दिया।
फिर जब अंत में राम लेने आया,
सीता को,
त्याग दिया उसने अमर,
होने का वरदान दिया था रावण,
ने उसे जो।
फिर काली के साथ बस ने का,
लिया सीता ने निर्णय,
और रावण भी जाकर बस गया,
भैरव के कक्ष में।
जब – जब किसी ने
रावण को किया याद,
तब – तब उसने,
रावण को पाया अपने द्वार।
जिस मनुष्य का होगा जन्म,
नव – ग्रहों के बंधन पर,
वह बनेगा रावण का वंसज,
और मिलेगी उसे शक्ति अपार।
ज्ञान होगा उसमे भरपूर,
मारेगा जब वह
तब डर जाएंगे जगत के,
सर्वश्रेष्ठ ईश्वर और असुर।