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Ajay Singla

Classics

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Ajay Singla

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रामायण ४७ , लक्ष्मण का मूर्छित होना

रामायण ४७ , लक्ष्मण का मूर्छित होना

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लक्ष्मण क्रुद्ध होकर चले तब

वानर, राक्षस युद्ध करें भारी

गड्ढों में था खून भर गया

लाल हो गयी धरती सारी।


लक्ष्मण मेघनाद युद्ध करें

लक्ष्मण उनकी करें धुलाई

मेघनाद सोचें प्राण संकट में 

वीर घातिनी शक्ति चलाई।


लक्ष्मण की छाती में लगी वो

लक्ष्मण जी को मूर्छा आई

संध्या हो गयी थी तब तक

सेना सारी वापिस आई।


राम पूछे लक्ष्मण कहाँ हैं

हनुमान उनको ले आये

दुखी हुए रघुवर देखकर

लक्ष्मण मूर्छित, बोल न पाए।


जाम्ब्बान कहें, सुषेण वैद्य एक

कोई उनको लेने अब जाये

छोटा रूप हनुमान धरें तब

घर समेत उनको ले आये।


सुषेण कहें औषधि पर्वत पर

कहें, हनुमान तुम जाओ अब

एक गुप्तचर रावण का वहां

भेद बताया रावण को सब।


कालनेमि के घर आया रावण

सारा हाल था उसे बताया

वो बोले कैसे रोकूं कपि को

जिसने था सारा नगर जलाया।


वैर करो न राम से रावण

ये सुन रावण क्रोध से भर गया

ये देख कालनेमि सोचे

दोनों तरफ से मैं तो मर गया।


मरूं रावण के हाथ से,इससे

अच्छा राम दूत मुझे मारे

कपि के मार्ग में माया रच दी

सुन्दर आश्रम, तालाब किनारे।


कपि देखा, ये मन में सोचें

जल मैं पी लूं, मुनि से पूछ कर

थकान मिटाऊं यहाँ पर थोड़ी

विश्राम करूँ यहाँ मैं पल भर।


मुनि वेश में कालनेमि था

कहता, युद्ध जो ये हो रहा

ज्ञान दृष्टि से मैं देख रहा

जीतेंगे राम, इसमें संदेह ना।


जल माँगा जब हनुमान ने

कहे कमंडल से तुम पी लो

कपि कहें थोड़े से तृप्ति ना

वो कहे तुम तालाब से ले लो।


तुम को ज्ञान मैं दूँगा तब फिर

जब वापिस स्नान कर आओ

हनुमान तालाब में उतरे

एक मगरी ने पकड़ा पाँव।


हनुमान ने मार दिया उसे

चली गयी लेकर दिव्य देह

जाते जाते कपि को बताया

कपटी राक्षस है, मुनि नहीं ये।


तब उनको फिर सबक सिखाया

पास आये मुनि के हनुमान

कालनेमि को मारा हनुमान ने

राम राम कह त्यागे प्राण।


हनुमान पर्वत पर पहुंचे 

बूटी न पहचान सके 

उखाड़ लिया पूरे पर्वत को 

हाथ पर धर लिया उसे। 


रास्ते में अयोध्या नगरी 

आकाश में कोई पर्वत लिए जा रहा 

भरत सोचें ये कोई राक्षस 

धनुष खींचकर बाण था मारा। 


गिर पड़े थे पृथ्वी पर कपि 

राम राम का करें उच्चारण 

भरत व्याकुल हुए थे सुनकर 

सोचें घायल कपि मेरे कारण। 


ह्रदय से लगाया हनुमान को 

राम कसम दे, जगाया था उनको 

हनुमान सब कथा सुनाए 

कहें जल्दी जाना है मुझको। 


भरत कहें चढ़ जाओ बाण पर 

राम के पास तुम्हें ले जाये 

एक पल के लिए अभिमान हुआ 

क्या भार बाण मेरा सह पाए। 


फिर सोचा प्रताप राम का 

कहें हनुमान मैं जाऊँ अब वहां 

उधर राम लक्ष्मण को देखें 

कहें, हनुमान रह गए हैं कहाँ। 


श्री रघुनाथ दुखी बहुत थे

लक्ष्मण को वो गले लगाए

वानर सब भयभीत हो गए

तभी वहां हनुमान थे आये।


गले लगाया कपि को राम ने

वैद्य ने तब उपाय बताया

मूर्छा टूटी लक्ष्मण की

उनको अब होश था आया।


 




 



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