राम सीता विरह
राम सीता विरह
राम से लगन लगी, तो सीता राम ध्याये।
राम से मिलूॅ मै कैसे, कोई तो बताये।
धर्म मेरा रूप सीते, कर्म मेरी छाॅव।
सीता तुमसे कैसे अपना, रिश्ता निभाॅऊ।
राम जी के संग मे सीता, राम जी के ढंग मे सीता
सीता राम की, राम नाम की, राम प्रीत है सीता धाम की।
लाज हमारे कुल की, सीता निभाना।
लौटकर हरगिज कभी भी, वापस न आना।
दूर रहोगी लेकिन, चाहत तुम्ही होगी।
राम के विरह मे भी, राहत तुम्ही होगी।
राम जी के संग मे सीता, राम जी के ढंग मे सीता
सीता राम की, राम नाम की, राम प्रीत है, सीता धाम की।
पति धमॆ मेरा है, वचन जो तुम्हारा।
दिल ने हमेशा स्वामी, तुमको पुकारा।
होकर जुदा भी, तुमसे मिलते रहे हम
ख्वाबो मे ही अक्सर, देना सहारा।
राम जी के संग मे सीता, राम जी के ढंग मे सीता
सीता राम की, राम नाम की, राम प्रीत है सीता धाम की।
तन्हा रहकर भी सीता, पति नाम जपती।
उम्मीद, सपनो मे दिन रात तपती।
राम भी बेसुध बैठे, सीता कहाॅ हो।
तुसमे मिलन को, है हसरत तडपती।
राम जी के संग मे सीता, राम जी ढंग मे सीता।
सीता राम की, राम नाम की, राम प्रीत है, सीता धाम की।
दफन हुई धरती मे, सीता दिवानी, मन मे उम्मीदे है आॅखो मे पानी।
तन्हाई रूसवा हुई हमसे ऐसे, चीखे पुकारे बताते कहानी।
सीता से बिछुडे तो रोते रहे थे, मिलने को खुद की माॅगे कुरबानी।
हे धरती मैया मुझे भी समा ले, सीता से जुडती मेरी हर निशानी।
राम जी के संग मे सीता, राम जी के ढंग मे सीता सीता राम की, राम नाम की, राम प्रीत है, सीता धाम की।
धर्म ने रघुबर को भी, ऐसे लताडा।
सिंह भी मानो जैसे, रो रोकर दहाडा।
विरह राम सीता, अमर प्रेम गाथा।
रूह ने जिस्म, मन ने ने भावो को ताडा।
राम जी के संग मे सीता, राम जी ढंग मे सीता।
सीता राम की, राम नाम की, राम प्रीत है, सीता धाम की।