राम राज्य चाहिए
राम राज्य चाहिए
मानव तन में बसे हो तुम,
फिर हो जाने को गुम।
जीवन मे रमे हो तुम
कर जाने को चक्षु नम।
स्वास के है तार खिले
संग सारे रोम छिद्र हिले।
अब कहाँ ? वो बलवान तेज शील
जो दिखलाई चीर वक्ष तुम्हें।
करुणा के फूल तुमने खिलाए
अखिल विश्व मे प्रेम पुष्प खिलाए।
रजनीशो का अंत किया,
राम राज्य का उदय किया।
हे मेरे मन के रथी
आओ बनकर फिर सारथी
जीवन की बेला निकली बह
निर्वाध गति लिए क्षितिज
डालो अपने वाणी की डोरी।
मन्द कर दो इसकी गति
ब्याकुल है मन देख दुष्प्रभाव
कैसा कर्तव्य त्याग
का हुआ अभाव।
आओ मेरे रामदूत
बनकर फिर पवन बेगवन।