राम नाम की महिमा
राम नाम की महिमा
राम नाम है एक अधारा ,
जपते मानुष उतरे पारा I
राम नाम की महिमा ऐसी ,
तैर गये सिंधु में सब शिला अकारा I
पग से छुअत शिला भई अहिल्या ,
जूठे बेर खा सबरी को तारा I
उल्टा नाम जपी डाकु रत्नाकर ,
भये वाल्मिक जाने जग सारा I
तात वचन पूर्ण की खातिर ,
वलकल वस्त्र तुरंत ही धारा I
छोड़ राज प्रासाद क्षण में,
भ्रात ,भार्या संग कानन पधारा I
मित्रता की लाज बचाई ,
बाली को छल से मारा I
भक्ती की महीमा दिखाई ,
हरि उर दर्श दिये संसारा I
एकै नाम लिए अंगद ,
पहुँचे दशानन दरबारा I
जो समझो तुम बलशाली ,
उठा दे पग जो हमने धारा I
धर्म ध्वजा की रक्षा किन्ही ,
रावण को भी तुमने तारा I
राजपाट दिन्ह बिभिषण ,
महीमा तुम्हरी अनंत अपारा I
लौट अयौध्या पूर्ण किन्ही वचन ,
भरत औ शत्रूघ्न हर्षित अपारा I
राम राज में हर्षित जन - जन ,
प्रेम औ त्याग की बहे रस धारा I