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Brijlala Rohanअन्वेषी

Tragedy

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Brijlala Rohanअन्वेषी

Tragedy

राजनीति की रपटीली राहें

राजनीति की रपटीली राहें

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राजनीति की रपटीली राहें ,

जिसको भी देखो बस साधने में लगे हैं सत्ता की चाहें ,  

 इन नेक - नीयत नेतागण के मुख से चुनाव के दरम्यान ही निकलती है जनता की दु:ख दर्द भरी आहें !

बाद में इन बेचारी बेबस जनता को हाल पूछना भी कौन चाहे?

एक बार जीत जाये तो फिर देखिए नेताजी की तनी भौंहे और दूर से ही फेंकती बाहें !

जोड़- तोड़,दाँव-पेंच ,छल-कपट का लेते सहारे ,

चुनाव जीतने का हर हथकंडा अपनाते बेचारे ,

मूल्यों को अपने ताख पर रखकर सिद्धांतों से कर लेते खुद को किनारे, 

देश की हालत खस्ताहाल हो रही ,

अब देश की बिगड़ी सूरत कौन सँवारे?

किसे ठाट- बाट और शानो- शौकत से जीना है नागवारे?

सभी हैं एक- दूसरे के सताये हुए, 

सभी हैं बेचारे भ्रष्टाचार के मारे ,

अब तो नैया रामजी के ही सहारे ,

बिन पतवार के खवैया हैं बेचारे !

धन्य है भारत माता भाग्य हमारे ,

एक- दूसरे से उलझने में व्यस्त हैं सारे !

पर प्रश्न इस समय है कि कौन हमारे देश के हालात सुधारे ? 

सभी हैं चुनावी सभा में हंगामा करते हुए मशगूल बेचारे !  तो देश आखिर चलेगा किसके सहारे ?

जबतक हम नहीं जागेंगे तो देर से आएगी सवेरे 

आएगी भी या नहीं इसमें भी है संशय के फेरे ?

इसलिए अपने कर्तव्य को पहचान ; आजादी के सपने साकार करें सारे ।

राजनीति की रपटीली राहे ,

जिधर देखो उधर बस गूँज रही है सत्ता की चाहे !

 


 


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