राजनीति की रपटीली राहें
राजनीति की रपटीली राहें
राजनीति की रपटीली राहें ,
जिसको भी देखो बस साधने में लगे हैं सत्ता की चाहें ,
इन नेक - नीयत नेतागण के मुख से चुनाव के दरम्यान ही निकलती है जनता की दु:ख दर्द भरी आहें !
बाद में इन बेचारी बेबस जनता को हाल पूछना भी कौन चाहे?
एक बार जीत जाये तो फिर देखिए नेताजी की तनी भौंहे और दूर से ही फेंकती बाहें !
जोड़- तोड़,दाँव-पेंच ,छल-कपट का लेते सहारे ,
चुनाव जीतने का हर हथकंडा अपनाते बेचारे ,
मूल्यों को अपने ताख पर रखकर सिद्धांतों से कर लेते खुद को किनारे,
देश की हालत खस्ताहाल हो रही ,
अब देश की बिगड़ी सूरत कौन सँवारे?
किसे ठाट- बाट और शानो- शौकत से जीना है नागवारे?
सभी हैं एक- दूसरे के सताये हुए,
सभी हैं बेचारे भ्रष्टाचार के मारे ,
अब तो नैया रामजी के ही सहारे ,
बिन पतवार के खवैया हैं बेचारे !
धन्य है भारत माता भाग्य हमारे ,
एक- दूसरे से उलझने में व्यस्त हैं सारे !
पर प्रश्न इस समय है कि कौन हमारे देश के हालात सुधारे ?
सभी हैं चुनावी सभा में हंगामा करते हुए मशगूल बेचारे ! तो देश आखिर चलेगा किसके सहारे ?
जबतक हम नहीं जागेंगे तो देर से आएगी सवेरे
आएगी भी या नहीं इसमें भी है संशय के फेरे ?
इसलिए अपने कर्तव्य को पहचान ; आजादी के सपने साकार करें सारे ।
राजनीति की रपटीली राहे ,
जिधर देखो उधर बस गूँज रही है सत्ता की चाहे !
