राजनीति का रूप
राजनीति का रूप
राजनीति ढोलक में ढल रही
है धुन इसकी बहुत निराली
वादे हैं मधुर वाणी के सामान
पर चोट इसकी सबने पहले कहां है जानी
बस मधुर वाणी कानों से है पहचानी
नैनों पर तो विश्वास की चादर डाली
वादों का है पूरा घड़ा खाली
संज्ञान लिया है वोटों को पाने का
संकल्प है जनता के विश्वास को हराने का
यह नीति है राजनेता के राजो की
झूठी है नींव हर एक वादे की
भोली जनता कब देख पाई रंग इनके
रंग और इरादों की
की राजनीति चले झूठे वादों पर
कौन महान नेता से टक्करावेगा
जब राजनीति ही महानता जलाएगी
तो विकास कहां से पाएगी
पापों की सीमा नहीं
प्रायश्चित करवाने वाला कोई महान नहीं।