नारी जीवन
नारी जीवन
नारी का बस यह है संसार
जन्म पिता मृत्यु पति पर है त्याग
सारा जीवन कर दो सब पर निछावर
बस यही नारी का संसार
देवी का सम्मान दिया
जीवित ही मार दिया
कब किसने सोचा
नारी की इच्छा क्या
तुम पापी हो तुमको यह दिखता क्या ।।।।।
गर अपने बारे में सोच लिया
अपराध से नाता जोड़ लिया
जीवन को किस धारा पर छोड़ दिया
उसने मंजिल को ना कोई मोड़ दिया
अपनों के खातिर सुख दुख भूल गई
फिर भी अपनों की नफरत से जूझ रही
क्या पाप है हमने किया
नारी का जो रूप लिया
कब किसने सोचा नारी की इच्छा क्या
तुम पापी हो तुमको यह दिखाता क्या।।।।।।
हमको उसने ही बनाया
उसने ना कोई भेद किया
फिर क्यों मनुष्य ने गुलामी का उपहार दिया
नारी को नीति से जोड़ दिया
पाप पुण्य को भूल गए
यह दुनिया
नफरत की नदियां में डूब रहे
इनके तो अनेक रूप रहे
परंपरा निभाने को अटूट रहे
अनजान है पापों की धारा में डूब रहे
कब किसने सोचा कब किसने सोचा
नारी की इच्छा क्या
तुम कहां पर हो तुमको यह दिखाता क्या।।।।
