राज़-ए-दिल
राज़-ए-दिल
कहते हैं अल्फ़ाज़ों से उलझना छोड़ दो
हमने कहा, तुम हमसे लड़ना छोड़ दो।
गर तुम सताओगे तो हम कहाँ जाएंगे
क़लम की नोक से काग़ज़ ही रूलाएंगें।
मुस्कुरा कर बोले राज़ एक बताता हूँ मैं
सिर्फ़ तुम्हें पढ़ने के लिए ही सताता हूँ मैं।
हम भी इतराए और राज-ए-दिल खोल दिया
जो ज़बां न कह पाई, आँखों ने बोल दिया।