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S Ram Verma

Abstract

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S Ram Verma

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प्यार की गर्माहट !

प्यार की गर्माहट !

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छोटी छोटी रुई के 

से टुकड़े आकाश से 

गिर कर बिछ जाते हैं

 

पूरी की पूरी धरा पर

सफ़ेद कोमल मखमली 

चादर की तरह तेरा 

प्यार भी तो कुछ 

कुछ ऐसा ही है


बरसता है इन्ही रुई 

के फाहों की तरह 

और फिर बस जाता है।


मेरे इस दिल की सतह 

पर बिलकुल शांत श्वेत 

चादर की तरह उस में 

बसी तेरे प्यार की गर्माहट।

 

मुझे देती है हौसला 

जिस के सहारे मैं 

उबर सकूं ज़िन्दगी 

की कड़ी धूप से !   


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