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Arunima Bahadur

Inspirational

5  

Arunima Bahadur

Inspirational

पूस की रात

पूस की रात

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वो पूस की रात,

कंपकपाते हाथ,

कितने नैनो से,

अश्रु बरसात,

न दो जून की रोटी,

न छत की मिले आस,

न बदन पर ऊनी कपड़े,

पर दर्द न कभी उमड़े,

कितने है इस दयनीयता में,

पर किसी को क्या फर्क पड़े,

वो आलीशान बंगले,

नरम मुलायम से गद्दे,

प्लेट में पकवान,

पर गरीबो पर दया न उमड़े,

काश उठते कुछ हाथ,

मिटाने ये असमानता,

देने कुछ राहत की छत,

कुछ गर्म कपड़े,

कुछ भोजन की थाल,

फिर कुछ और हो,

ये पूस की रात,

कुछ राहतो की बरसात,

कुछ प्रेम और लगाव,

खुशियो से तापते अलाव,

काश!बन जाते,

हम सब भी इंसान,

दे कर कुछ तो दान,

कुछ जगा कर भाव,

कुछ त्याज्य वस्तुओ का,

कर देते कुछ तो दान,

देने सबको मुस्कान,

बदल जाये फिर,

ये पूस की रात,

हो बस समानता,

प्रेम,करुणा सी,

हर एक के दिन

और हर एक की,

हर पूस की रात।।



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