पूस की एक और रात
पूस की एक और रात
जाड़े से ठिठुरता हल्कू
खड़ा हुआ है
कंबल मांगने वालों की कतार में।
उसके कुत्ते झबरा को
पेड़ पर चढ़े वानर
चिढ़ा रहे हैं।
रात अभी पूस की ही है
हल्कू के ठिठुरने के साथ-साथ
प्रजातंत्र भी ठिठुर रहा है।
लेकिन कंबल बांटकर
उस पर मरहम लगाने की
कोशिश की जा रही है।
