Rajendra Hindustani

Drama Tragedy

0.2  

Rajendra Hindustani

Drama Tragedy

पूर्ण और अपूर्ण....

पूर्ण और अपूर्ण....

1 min
496


पूर्ण होकर भी एक अकेला, अपूर्ण दिखाई देता है,

रात के बीना दिन का, कहाँ अस्तित्व दिखाई देता है।


जो समझता है पूर्ण उन्हें, आवरण दिखाई देता है,

आवरण के भीतर देखने का, हुनर कहाँ दिखाई देता है।


चहुंओर धन ऐश्वर्य का, मंजर दिखाई देता है,

आवरण ओढ़े हुए हर शख्स, मुस्कुराता दिखाई देता है।


विकास और क्षरण से परिष्कृत, ये जहाँ दिखाई देता है,

सत्य सामने खड़ा है पर, स्वार्थ में कहाँ दिखाई देता है।


अपनी ख्वाहिशों में लिप्त जमाना दिखाई देता है,

सेवा करता कहाँ, कुदरत का हर पल दिखाई देता है।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Drama