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पूनम के चाँद

पूनम के चाँद

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ओ पूर्णिमा के चाँद

ध्वल चाँदनी सँग

कितने तुम इठला रहे

अपनी सुंदरता से मुग्ध

सबको तुम बहला रहे

इस सुंदर रात में

मैं फिरती उदास हूँ

पिय मुझसे दूर है

बैठी उनकी आस में हूँ

तन्हाई करीब है मेरी

होठों में पुकार है

कभी साथ बैठ

निहारते थे तुम्हे जी भर

उन पलों को जीने

आई तेरे द्वार हूँ

मैं यहां से कर रही तेरा दीदार हूँ

वो जहाँ भी है देख रहे होंगें तुम्हे

ढूंढ रहे होंगे

तुझमे मेरा अक्स

हम दोनों की दूरी में

एक तेरा ही साथ

जैसे तुझसंग चाँदनी का

साथ अमर रहता है

मेरे पिया से मेरा भी

 मिलन को अक्षय करना है

जब भी जन्म हो जीवन में

जो भी रूप मिले मुझको

मेरे प्रिय का साथ मिले

जन्मों जन्मों तक 

एक दूजे के हो



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