पुतले
पुतले
कल्पना में मेरी पैसों के पुलिंदे दिखते हैं।
चिलचिलाती धूप में सिर्फ
रुकी सांसों के पुतले दिखते हैं।
समृद्धि की दिशा बदली है।
पेड़ों की गिनती छोड़,
पैसों की गिनती शुरू की है।
पैसों की गिनती थमने से, पहले ही लेकिन ,
सांसों की गति थम जाएगी।
फिर इन पैसों की ,
क्या अहमियत रह जाएगी।
प्रकृति को जब टेक इट फॉर ग्रांटेड लिया है।
प्रकृति ने भी फिर माँ दुर्गा का रूप सजाया है।
एक ही झटके में सबको घरों में बंद करवाया है।
मां है इसीलिए सिर्फ ताला लगवाया है।
इंसानों की तरह सर्वनाश नहीं अपनाया है।