पुस्तक
पुस्तक
पुस्तक है समाज का दर्पण,
दिखलाती है उसका चेहरा ।
छुपे छुपाए ना सच्चाई,
लाख लगा लो चाहे पहरा ।।
बचपन से ही साथी बनकर,
पुस्तक हमें लुभाती है।
दिखा दिखाकर चित्र मनोहर,
बाल हृदय बस जाती है ।।
युवा जनो को सरस कहानी,
प्रेम गीत पहुंचती है ।
देश देश की देकर खबरें,
सबका ज्ञान बढ़ाती है ।।
वृद्धावस्था में तन दुर्बल,
अपने सभी भूल जाते है।
तब पुस्तक ही बनकर साथी,
घण्टों समय बिता जाती है ।।
पुस्तक पढ़कर बने गाँधी ,
बने शिवाजी वीर महान।
पुस्तक ऐसी अपनी साथी ,
सबको दिलवाती सम्मान।।
जैसी पुस्तक हो वैसा ही,
मन पर पड़े प्रभाव हमारे ।
इसीलिए सद् ग्रन्थ पढ़ो तो,
खुल जाएंगे भाग्य तुम्हारे ।।
