" पुष्पांजलि "
" पुष्पांजलि "
हमें पता नहीं हमारे हाथ में कलम क्यूँ आ जाती है ?ड्राअर से सफेद पन्ने वाली कॉपी निकल आती है !अपने दरवाजे को अन्दर से छिटकनी लगा के कुछ लिखना शुरू कर देते हैं !जो कुछ भी अपने मस्तिष्क में उभरता है उसको उकेर देते हैं !!भाव ,भंगिमा रस ,अलंकर नकारात्मक ,सकारात्मक परिसीमाओं से दूर रहकर कुछ लिख लेते हैं !लय -मात्रा संगीत के उतार -चढाव अन्तरा को नजर अंदाज कर कभी सुने कमरों में गुनगुना लेते हैं !!कई लोग अपनी तिरछी निगाहों से देखकर अनदेखी हमें करते हैं !कई लोग हमें रोगी कहके त्रिष्कार यूँही करते हैं !!चाहतें ,इक्क्षा ,ललक और धुन का संक्रामक भला सब में है !कौन इससे है अछूता इसके वायरस सब में है !!व्यथा और उल्लास को हम अपनी लेखनी में व्यक्त करते हैं !किसीको को अच्छा लगे या ना लगे पर हम अपनी साहित्य को एक " पुष्पांजलि "अर्पण करते हैं !!
