पुष्प सौरभ।
पुष्प सौरभ।
मत जानो आस्तिक उसको, जो ईश्वर भजन करता है।
सच्चा आस्तिक वही कहलाता, जो सदा उससे डरता है।।
अमीरी से गरीबी अच्छी, जिसको दीन दुनिया की खबर नहीं।
निडर सदा वह रहता सबसे, प्रभु इच्छा पर ही रमता है।।
संपूर्ण इच्छाओं का जो दास नहीं, समर्पित भाव रखता है।
समीप प्रभु के वही रहेगा, चिंता कभी नहीं जो करता है।।
छिपी सच्चाई जो अंतर्मन में, दिख न सकती तुमको अपने से।
कर ले सतसंगत वीतराग पुरुष की, राग रहित नित करता है।।
पवित्र हृदय उसका है होता, जो गुरु दर्शन का अभिलाषी है।
प्रभु दर्शन सुलभ हो जाता, नित्य गुरु चरनन ध्यान करता है।।
नेत्र दृष्टि निर्मल हो जाती, सब जन में ईश्वर देखता है।
गुरुमय उसका जीवन बन जाता, सदा प्रेम सभी से करता है।।
तर्क-कुतर्क उसको नहीं भाता, सब की बात वह सुनता है।
"नीरज" तो गुरु का प्रेम दीवाना, हर शै में दर्शन करता है।।
