पुष्प प्रभा प्रवाह
पुष्प प्रभा प्रवाह
कली कोमल रात के बाद
फूल दुनियां में प्रभा प्रभात
खुशियां सौगात।।
पुष्प और इंसान समान
कली से पुष्प बनती कहीं
गम श्रद्धा में कही खुशिया
चमन की बहार।।
देवों सर चढ़ती मन्नत मुरादों
जीवन मंगल की चाहत भरती
बाहारों में बरसती सेहरे का चेहरा
बनती जीवन साथ कि मुस्कान।।
गजरे की शोभा महफिलों की
रौनक रौशन शमां गजरा
गुलाब चाहत की खुशियों का
शबाब।।
पुष्प की खुद की चाहत दुनियां
अलग गर्व अभिमान।।
देश की शान पर मर मिटने वालो
पर इतराती उनकी राहों को सजाती
रात की कली प्रभा प्रवाह।।
पुष्प शाम ढले पैरों तले रौदी
जाती पुष्प इंसान के खुशी गम
आंसू मुस्कान ।।
इंसानी जिंदगी लम्हों की हमदम
हम सफर साथ सच्चाई पुष्प और इंसान।।
इंसान नौ माह माँ की कोख में
रहता जन्म लेता दुनियां को
जीता समझता जवाँ नौजवां बूढ़ा
अवसान।।
पुष्प की तरह खुशियां गम उमंग
तरंग आस्था विश्वास के संग फिर
श्रद्धा की अंजली के पुष्प के संग
ओढ़ लेता कफ़न।।
पुष्प कहता सुन इंसान मैं सुबह
शाम दुनियां जहाँ की तमाम गम
खुशी का अंदाज़ अरमान तू मेरी
सुबह शाम की जिंदगी इंसान।।

