पुराना बरगद
पुराना बरगद
था इक पेड़ बड़ा अलबेला
एकांत सड़क पर खड़ा अकेला
आते जाते राही बैठें
लें छाया का भरपूर आनंद
सुन्दर हरे भरे पत्ते
हिलते जब भी मंद मंद
मैं भी बैठा इक दिन वहां
शांत माहौल सारा था
चीं-चीं चूं-चूं की मधुर आवाजें
ऐसा सुन्दर नजारा था
वास्तव में वो पेड़ नहीं था
अंदर जीवों का आशियाना
शीतल ठंडी हवा और छाया
राहगीरों का आना-जाना
ऐसा स्थान कहां देखा
हर इंसान जहां गदगद था
वो पीपल था न नीम था
वो पेड़ पुराना बरगद का।