पत्थर
पत्थर
पत्थर फेंक के मारता वो भीड़ में
बड़ा खुश हुआ करता था
एक बार ज़ब एक पत्थर ने खुद का
सर फोड़ा तो आहे भर के कहता !
अरे ये क्यों लगा मुझे
मैंने चोट क्यों खायी
तब चीख पड़ी एक परछाई
ज़ब भीड़ का फायदा उठा
तू पत्थर फेंकता था
वो पत्थर लोगों को
लहूलुहान कर देता था
तब तो तुझे समझ नहीं आता था
अभी तो सिर्फ एक पत्थर ने
तेरा ये हाल किया
याद कर कितने पत्थर
फेंके तूने कितने सारे !
अहम मिट्टी बन गया उसका
बिगड़े से सुधार हुआ उसका
अब वो भीड़ को भड़कता नहीं
शांत करने की कोशिश करता
कोई घायल हो तो उसकी
मदद की पहल जरूर करता !
इतनी भी खुदगर्ज ना बनो तुम
कि चोट मिलने से ही तुम्हारे किये का
हिसाब मिले
ख़ुशी दें नहीं सकते
तो गम देने की वजह भी ना बनो !