पत्र जो लिखा पर भेजा नहीं
पत्र जो लिखा पर भेजा नहीं
दिल में दबे हुए एहसासों को उकेरती हूँ।
जो जता ना पाई जो दिखा ना पाई वो
छुपी मोहब्बत की दास्ताँ लिखती हूँ
हाँ मैं तुम्हें रोज़ एक खत लिखती हूँ !
बहुत कुछ कहना था, बहुत कुछ छूट गया
जो गए वक्त के साथ वो फ़साने लिखती हूँ,
हाँ मैं तुम्हें रोज़ एक खत लिखती हूँ!
टूटी जो उस दिन तुम्हारे इन्कार से एक चीज़
वो कोई खिलौना नहीं मेरा दिल ही तो था
कतरों में बिखरे उस टूटे दिल के अरमान
लिखती हूँ
हाँ मैं तुम्हें रोज़ एक खत लिखती हूँ!
बिछड़े सपनों का दर्द ओर तुम्हारे प्रति मोह
की मायाजाल लिखती हूँ
चाहत की आँधी ओर वेदना का तूफ़ान
लिखती हूँ
हाँ मैं तुम्हें रोज़ एक खत लिखती हूँ!
काश की मैं समझा पाती काश की तुम
समझ पाते अपनी अनकही बातों के अर्थ
लिखती हूँ,
आँखों के अश्कों की गाथा ओर मन के
मंथन का सार लिखती हूँ
हाँ मैं तुम्हें रोज़ एक खत लिखती हूँ!
तुम्हारी यादों के सुमन से सजी करवटों
की हार लिखती हूँ,
गिले तकिये की सिलन ओर सिलवटों में
छुपे महीन एहसास लिखती हूँ,
हाँ मैं तुम्हें रोज़ एक खत लिखती हूँ!
मेरी सारी ज़िन्दगी मुझे ऐसी लगती है
जैसे मैंने तुम्हें एक ख़त लिखा हो
इस दिल धड़कन एक-एक अक्षर है
हर साँस जैसे कोई मात्राएँ
हर दिन जैसे कोई वाक्य और सारी
ज़िन्दगी जैसे एक ख़त!
काश कभी यह ख़त तुम तक पहुँचा पाती
फिर मैं कभी कुछ ओर लिखने की कोशिश
भी नहीं करती इसलिए
हाँ मैं तुम्हें रोज़ एक खत लिखती हूँ।।

